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छोटी-छोटी चींटियाँ
सरपट दौड़ रही हैं
यहाँ से वहाँ
चिड़ियाँ चहचहाकर
बना रही है घोंसला
कभी धीरे कभी तेज
चलती बसंती हवा के
स्पर्श से
रोमांचित है सारा बदन
छोटे-छोटे हरे धब्बों
से सजा
गर्व से खड़ा
उपस्थिति का भास
दे रहा है ठूँठ
फिर से कोपलें
फूटने लगी हैं
उसने हार नहीं मानी
और ढूँढ़ ली
जीवन की संभावनाएँ।
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